- प्रो प्रभाकर सिंहा
सनातन धर्म हिंदुत्ववादियों का नवीनतम नकाब है। हमें कहा जा रहा है कि अब कोई हिंदू न रहा। अब हमारा धर्म सनातन धर्म है। किसने इस बदलाव का निर्णय लिया ? क्या हिंदू साधु संतों का कोई धार्मिक समागम हुआ था, जिसमें शास्त्र चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया कि हिंदुओं का धर्म अबसे सनातन धर्म हुआ करेगा ? ऐसा कोई समागम नहीं हुआ है, जिसमें यह उद्घोषित हुआ हो कि हिंदुओं का धर्म सनातन धर्म है। जाहिर है यह हिंदुत्ववादी राजनेताओं का धोखाधड़ी का खेल है।
सनातन धर्म का अर्थ क्या है ? इसका तात्पर्य है जो 'मनुस्मृति' बताती है, "मनुष्य जिस क्षण जन्म लेता है, उसी समय से गैरबराबर है।" मोटे तौर पर चार वर्ण हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। प्रत्येक को उसका काम सौंपा गया है, जिसे अवश्यमेव पूरा करना है। वे अपने कर्तव्य भी नहीं बदल सकते। ब्राह्मण धार्मिक अनुष्ठान और रिवाज संपादित करते हैं। क्षत्रिय शासक, योद्धा और राज्य रक्षक होते हैं। वैश्य को व्यापार करना होता है। शूद्र का काम 'सेवक' का होता है। सभी वर्णों को अपने कर्तव्य का पालन करना है। प्रत्येक वर्ण में महिला की स्थिति पुरुष की तुलना में कमतरी की है। यह भी अपरिहार्य है कि प्रत्येक वर्ण के प्रत्येक मेंबर को निर्धारित काम करने ही हैं।
1. यदि सनातन धर्म का पालन किया जाना है, तो लोकतंत्र को अस्वीकार करना होगा। क्योंकि लोकतंत्र "सबों की समानता" का पक्षधर है।
2. संविधान को भी त्यागना होगा। क्योंकि संविधान यह इजाजत देता है कि प्रत्येक व्यक्ति हर वह काम करने की अर्हता रखता है, जिसको वह दक्षता पूर्वक संपादित कर सके।
3. यदि 'सनातन धर्म' का पालन किया जाता है तो मोदी और अमित शाह को निष्कासित होना होगा। क्योंकि ये क्षत्रिय नहीं हैं, शासक नहीं हो सकते।
4. क्षत्रिय राजनाथ सिंह को प्रधानमंत्री बना देना चाहिए।
5. मोदी को कुछ बड़े व्यावसायिक घरानों के प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। वह अदानी या अंबानी की कंपनी को ज्वाइन कर सकते हैं।
6. शूद्र मंत्रियों और सांसदों से कहा जाए कि वे सदन का फर्श साफ करें और सूखे कंठ से सांसदों को पानी पिलाएं।
7. राष्ट्रपति को पूरी तरह से हटना पड़ सकता है। क्योंकि मैं नहीं जानता हूं कि 'मनुस्मृति' अनुसूचित जनजाति के लिए क्या कहता है ?
कहने की आवश्यकता नहीं कि मैं मनुस्मृति द्वारा निर्धारित व्यवस्था और 'सनातन धर्म' का विरोधी हूं।
(बिहार विश्वविद्यालय से अवकाशप्राप्त अंग्रेजी के प्रोफेसर प्रभाकर सिंहा प्रतिष्ठित लोक स्वातंत्र्य संगठन Peoples Union For Civil Liberty के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। ख्यातनाम न्यायमूर्ति वीएम तारकुंडे, न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर और विख्यात पत्रकार कुलदीप नय्यर जैसे लोग PUCL के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। इसी गौरवशाली परंपरा की कड़ी में प्रभाकर जी आते हैं। सनातन धर्म के पीछे हिंदुत्ववादियों की क्या मंशा है, इसे प्रभाकर जी बखूबी उजागर करते हैं। मूल पोस्ट अंग्रेजी में है। सर्वसाधारण भी इसका पारायण कर सकें, इसलिए इसका तर्जुमा अच्युतानंद किशोर नवीन ने किया है.)