गंगा को बचाने के लिए मुजफ्फरपुर में देशभर से जुटे सैकड़ों लोग

- गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रणेता अनिल प्रकाश के नेतृत्व में गंगा बेसिन की समस्या पर हो रहा तीन दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श  

- नमामि गंगे योजना के नाम पर पिछले 10 साल से लूट मची है : अली अनवर

  • संतोष सारंग की रिपोर्ट 
मुजफ्फरपुर. 'गंगा धार्मिक मामला नहीं है, जिसका राजनीतिक दोहन किया जा रहा है, बल्कि यह सांस्कृतिक मामला है. धार्मिक भावनाओं का शोषण करने के लिए राजनीतिक दल के लोग तरह-तरह की बातें करते हैं. नमामि गंगे योजना के नाम पर पिछले 10 साल से लूट मची है. यह योजना एक तरह से फेल है. पैसे भ्रष्टाचारियों, ठेकेदारों की जेब में जा रहे हैं. यह सब गंगा को मारने की योजना है.' 
गंगा को बचाने के लिए मुजफ्फरपुर में देशभर से जुटे सैकड़ों लोग

ये बातें पूर्व राजयसभा सांसद एवं लेखक अली अनवर ने गुरुवार को मिठनपुरा स्थित चंद्रशेखर भवन में गंगा मुक्ति आंदोलन के बैनर तले आयोजित 'गंगा बेसिन : समस्याएं एवं समाधान' विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श में कहीं. भागलपुर से आए वरिष्ठ प्राध्यापक व लेखक डॉ योगेंद्र ने कहा कि भारत की तमाम नदियों पर गहरा संकट है. दामोदर से लेकर बागमती व यमुना तक छोटी-बड़ी तमाम नदियां बर्बाद हो रही हैं. आधुनिक सभ्यता प्रकृति के खिलाफ जंग कर रही है. प्रकृति के खिलाफ एक नई सभ्यता उगाने की चेष्टा पूरी दुनिया में की जा रही है.  

इस राष्ट्रीय विमर्श का शुभारंभ अलग-अलग प्रदेशों से आयीं महिला प्रतिनिधियों ने दीप प्रज्वलित कर किया. कार्यक्रम में राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, भागलपुर, कहलगांव एवं नेपाल के दर्जनों प्रतिनिधि शामिल हुए, जो पर्यावरण, नदी, जल-जंगल-जमीन को लेकर काम कर रहे हैं. इनमें प्रमुख रूप से गंगा मुक्ति आंदोलन के दिल्ली चैप्टर के सेक्रेटरी व वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत, वीरेंद्र क्रांति वीर, हेमलता महस्के, अखिलेश कुमार, कृष्ण कुमार माढ़ी आदि प्रमुख हैं. झारखंड से आये सामाजिक कार्यकर्त्ता घनश्याम ने कहा कि गंगा समेत अन्य नदियों को बर्बाद होने से बचाने के लिए एक बड़े जनांदोलन की जरूरत है. कार्यक्रम को पूर्व सीनियर आइएस व्यासजी एवं अंतर्राष्ट्रीय नदी वैज्ञानिक व आईआईटी कानपुर के प्रो. राजीव सिन्हा ने भी ऑनलाइन संबोधित कर गंगा बेसिन की गंभीर समस्याओं एवं उसके समाधान पर विस्तार से बताया. गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रणेता अनिल प्रकाश ने गंगा समेत अन्य नदियों के दोहन के लिए एक बड़े आंदोलन की आवश्यकता पर जोर देते हुए तीन दिनी राष्ट्रीय विमर्श एवं आंदोलन की रणनीति पर चर्चा की. लोक गीतकार व संस्कृतिकर्मी कुमार विरल ने गंगा व नदी पर आधारित लोग गीत प्रस्तुत किया. सामाजिक कार्यकर्ता संगीता सुभाषिनी द्वारा 'कांप रही है धरती थर-थर, समय बड़ा विकराल है, मानव के मनमानी सम्मुख बैठा काल है' कविता पढ़ी गयी.            

राष्ट्रीय विमर्श में मुख्य रूप से अशोक भारत, वरिष्ठ पत्रकार अनिल गुप्ता, शाहिद कमाल, प्रो. रमेश ऋतंभर, अरविंद वरुण, एसयूसीआई के अर्जुन कुमार, गौतम कुमार जनप्रिय, चंदेश्वर राम, बागमती संघर्ष मोर्चा से नवल किशोर सिंह, ठाकुर देवेंद्र कुमार, जगरनाथ पासवान, राम एकबाल राय, अरविंद, कृष्णा प्रसाद, डॉ नवीन कुमार झा, नेपाल कमला नदी बचाओ अभियान जनकपुर के श्याम नारायण यादव, राजीव कुमार, विनय कुमार, राजीव कुमार, हरेंद्र मंडल, ललन राय, राम अनेक राय, राम लोचन सिंह, राजकुमार मंडल, हुकुमदेव नारायण सिंह, रामा शंकर राय, विक्रम जय नारायण निषाद, अखिलेश मानव, संजीत सिंह, नीरज सिंह, अमरनाथ, मुसकान केशरी, लोकगायिका अनीता कुमारी, सुमन कुमारी, आदित्य राज, अवधेश कुमार, राम लखींद्र प्रसाद, शिवनाथ पासवान, कृष्णमोहन, बसंत कुमार राय, आनंद पटेल, नदीम खान, मोहम्मद इदरीश, गणेश कुमार, संजय कुमार सिंह, अजय कुमार, संजीत कुमार दीवाना, आदित्य सुमन, गणेश, राजा राम सहनी आदि मौजूद थे. धन्यवाद ज्ञापन नरेश कुमार सहनी ने किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. विजय कुमार जायसवाल ने की एवं मंच संचालन सुनील सरला व उदय ने किया.  


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