- ------------------- वंदना पराशर
आओ मिलकर साथ बिता लें
नदी के उस पार 'तुम'
और 'मैं' नदी के इस पार
समय की धाराओं में हम
यूँ ही चलते रहे किनारे-किनारे
ज़रूरत तुम्हें भी थी
और मुझे भी
पुकारा तो तुमने भी होगा
कभी नदी की तेज़ लहरों में
तो कभी तेज़ हवा के झोकों में
गूँज बनकर वह अनसुनी-सी रह गयी
सोचा तो कई बार की हम
ले आये कहीं से पतवार
या बना ले नदी के ऊपर एक पुल
ख़ैर,
अब जाने दो बीती बातों को
जीवन के इस अंतिम पड़ाव में
आओ मिलकर साथ बिता लें।
आओ मिलकर,साथ-साथ हम
नदी को अपने में समा लें।
(वंदना पराशर अलीगढ़ विश्वविद्यालय से हिंदी में डॉक्टरेट। हिंदी की सुविख्यात कवयित्री। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रचनाएं प्रकाशित।अंग्रेजी, भोजपुरी में कविताएं अनुदित।)
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