- अमर शहीद रामफल मंडल को जन्मशताब्दी पर भूल गया देश
- क्रांतिवीर अमर शहीद खुदीराम बोस की अगली कड़ी थे वे
- 6 अगस्त, 1924 को रामफल मंडल का जन्म हुआ था
- उनके शताब्दी वर्ष पर नहीं लग सकी मुजफ्फरपुर में प्रतिमा
प्रभात कुमार
"ऐ मेरे वतन के लोगों
ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी"
ऐसे ही एक अमर शहीद रामफल मंडल हैं। जो सीता मैया की धरती पर 100 साल पहले पैदा हुए थे। आज जब देश अपनी स्वतंत्रता की 78 वीं वर्षगांठ मान रहा है और शान से हमारे प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र भाई मोदी लाल किला के प्राचीर पर एक बार फिर से तिरंगा फहरा रहे हैं। ऐसे मौके पर अपने शहीदों की याद आती है। अमर शहीद रामफल मंडल 6 अगस्त 1924 को गरबी मंडल की कोख से सीतामढ़ी जिले के बाजपट्टी थाने के मधुरापुर में भारत का यह सपूत पैदा हुआ था। गोखुल मंडल का यह सपूत अति पिछड़ी जाति धानुक परिवार में पैदा हुआ था लेकिन अपनी वीरता और राष्ट्रभक्ति का मिसाल रहा। मात्र 19 वर्ष और 17 दिन की अवस्था में अपनी देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी को चूम लिया।
उनका जीवन और संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमर शहीद खुदीराम बोस के संघर्ष से वीरता पूर्ण और क्रांतिकारी नहीं है। भले ही रामफल मंडल की ख्याति अमर शहीद खुदीराम बोस जैसी नहीं रही हो लेकिन उनके बलिदान किसी भी क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी के मुकाबले कम नहीं दिखता।
यह वही क्रांतिकारी नौजवान था, जिसने भारत छोड़ो आंदोलन और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन की प्रेरणा से सीतामढ़ी जिले में भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बना और सीतामढ़ी गोलीकांड के प्रतिरोध में 24 अगस्त 1942 को बाजपट्टी चौक पर गड़ासे के एक वार से तत्कालीन एसडीओ सिर धड़ से अलग कर दिया। एक पुलिस इंस्पेक्टर और दो सिपाहियों को भी मौत के घाट उतार दिया। इस घटना के बाद अंग्रेज पदाधिकारी वहां से भागने लगे और सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगा फहराने लगा। इस क्रांतिकारी नौजवान के शक्ति और साहस से पूरी अंग्रेजी हुकूमत करने लगी। यह बात और है कि अंग्रेजी सरकार ने अपने अधिकारियों और शिकारी को भेज कर शहीद रामफल मंडल के पैतृक घर को आग लगा दी और उसे जोत कर सपाट कर दिया। उसकी पत्नी जगपतिया देवी अंग्रेजों की नजर से दूर करने के लिए भले ही उसने नेपाल पहुंचा दिया और उसने एक पुत्र को भी जन्म दिया लेकिन उसने भी विभिन्न झंझावात जूझते हुए 8 महीने बाद ही दम तोड़ दिया।
"ऐ मेरे वतन के लोगों
तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो....
वीरों ने हैं प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी
जो लौट के घर न आये"
अमर शहीद रामफल मंडल वैसे ही शहीदों में एक बलिदानी रहे। जिन्होंने देश के लिए अपनी आहुति दी और शहीद हो गए। वैसे ही वीर शहीदों में एक शख्सियत थे। जो उस जमाने के सबसे नामी वकील सीआर दास और पीआर दास बार-बार कहने पर भी कोर्ट में अपने बयान से नहीं निकले और अपना जुल्म कबूल करते हुए। भारत माता की जय और वंदे मातरम का नारा लगाते हुए फांसी के तहत पर झूल गए। मालूम हो की महात्मा गांधी की पहल के पर इस मामले में बचाव के लिए यह दोनों वकील पहुंचे थे लेकिन वह दोनों रामफल मंडल फांसी की सजा से नहीं बचा सके। 23 अगस्त 1943 को भागलपुर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। मालूम हो कि उनकी अंतिम इच्छा इस देश की आजादी थी। जिसके आज 77 साल पूरे हो चुके हैं। देश में दो साल बाद भी अमृत महोत्सव जारी है। रामफल मंडल इस देश के और प्रदेश के ऐसे अकेले गुमनाम चेहरे नहीं इनकी भी लंबी फेहरिस्त है। सबसे दुख दिया है कि आज देश में हमारे नेता अंतिम आदमी तक आजादी और विकास किरण को पहुंचाने की बात करते हैं लेकिन आज भी रामफल मंडल का परिवार जिस तरह से गुरबत और मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर है। उसे दो जून रोटी और एक आशियाने की मूलभूत जरूरत बनी हुई है। उसका भतीजा अमीरी मंडल जिस तरह से अभी भी फूंस और खपड़ानुमा मकान में 15 लोगों के साथ रहता है। उसके लिए सबका विकास और सब का साथ का नारा कहां है। क्या यही न्याय के साथ विकास है। जो भी हो यह राजनीति और राजनेताओं की बात है लेकिन अमृत वर्ष में भी गरीबी और अमीरी के बीच कि यह बड़ी खाई 77 साल में भी बनी हुई है। इसका यह प्रमाण है। हम कहें कि रामफल मंडल जैसे अमर शहीदों को इसलिए भुला दिया गया क्योंकि उनका समाज अति पिछड़ा था। वह दबंग और संपन्न समाज से नहीं आते।
सीतामढ़ी में वर्तमान सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने उनकी एक प्रतिमा लगवाई है लेकिन अमर शहीद रामफल मंडल के जन्मदिन और शहादत दिवस पर सरकारी समारोह के आयोजन की जरूरत अब तक नहीं समझी गई है। जन्म शताब्दी वर्ष में भी उनके समाज से आने वाले राज्य सरकार के मंत्री शीला मंडल ने पटना में अपने आवास पर एक कार्यक्रम की औपचारिकता अपने पति के साथ जरूर पूरा की है लेकिन इसी समाज से आने वाले झंझारपुर के सांसद रामप्रीत मंडल और उससे पहले कई मंडल समाज से आने वाले राजनेता मंत्री और राज्यपाल भी रहे शख्सियतों की नजर इस दीनहीन हाल में रह रहे उनके परिवार और उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाने की ललक क्यों नहीं हुई। उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि को राजकीय दर्जा क्यों नहीं मिला। यह तो वही बता सकते हैं ,लेकिन सवाल आज भी बना हुआ है।
बिहार के यशस्वी मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता नीतीश कुमार जिन्होंने अति पिछड़ों को आरक्षण के माध्यम से विशेष हक तो दिया है लेकिन रामफल मंडल के मामले में उनकी शताब्दी को कैसे भूल गए। यह सवाल स्वाभाविक तौर पर बनता है। मालूम हो की बिहार में कुर्मी जाति जो धानुक को भी अपने जैसा ही मानती है। उत्तर बिहार में जो सामाजिक और आर्थिक स्थिति है। इसमें काफी समता है। यह स्थिति पटना और नालंदा में है या नहीं मुझे नहीं मालूम।
वैसे कोई शहीद और राष्ट्र नायक किसी जाति या समाज का नहीं होता। यह बहुत दुखद है कि हम लोग बुद्धिजीवी होते हुए भी इस तरह की बातें कर बैठते हैं। फिर भी अमर शहीद रामफल मंडल का जो क्रांतिकारी वृत्त रहा है। वह अमर शहीद खुदीराम बोस से कहीं भी काम नहीं है। ऐसे पिछले दबे-कुचले समाज से आने वाले क्रांतिकारी वीर हैं। जो आज इतिहास के पन्ने में दबे हैं। हमारे राजनेता जो भी कहे लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला है। मुजफ्फरपुर शहर की अगर बात लें तो अमर शहीद भगवान लाल को याद किया जा सकता है। जिसकी एक छोटी सी प्रतिमा छोटी सरैयागंज श्री नवयुवक समिति ट्रस्ट यह आगे लगी है। अगर वह किसी नामचीन जाति में पैदा हुए होते तो उनकी आदमकद प्रतिमा उनके कर्मस्थली तिलक मैदान में स्थापित होती।
एक नहीं अनेकों नाम है। बुद्धू नोनिया हो या नवादा का जवाहिर रजवार अथवा पश्चिम चंपारण का मुकुटधारी चौहान, मधेपुरा का किराय मुसहर या पूर्णिया के पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री सहित अनेक नाम है। जो अब इतिहास के पन्ने में ही शेष रह गए हैं।
अंत में मुजफ्फरपुर के उन नौजवानों को मैं सलाम करना चाहता हूं। जो इन दिनों मुजफ्फरपुर के बखरी चौक पर अमर शहीद रामफल मंडल की जनशताब्दी के मौके पर प्रतिमा स्थापित करना चाहते थे लेकिन प्रशासन और राजनेताओं के सुस्ती के कारण अपनी इच्छा नहीं पूरा कर सके। इस चौक पर प्रतिमा को स्थापित करने के लिए प्रक्रिया सरकारी कागजी तौर पर पूरी नहीं होने के कारण इसके लिए अभी भी संघर्षरत है। मैं उनके जज्बे को सलाम करते हुए। राज्य की सरकार और जिला प्रशासन से आग्रह करता हूं कि स्वतंत्रता के इस अमृत महोत्सव के अवसर पर के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान कर इस शहीद के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करें। मैं भी इस स्वाधीनता दिवस के अवसर पर ऐसे तमाम अपनी जान की न्योछावर करने वाले शहीदों को सलाम करता हूं।
जय हिंद!