- प्रभात कुमार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के लिए गले की हड्डी बने हैं। यह हालत आज से नहीं है। जब से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नरेंद्र मोदी विराजमान हुए हैं। यह संकट बना हुआ है। हाल के कुछ दिनों में सीएम नीतीश कुमार को लेकर बिहार भाजपा में कुछ ज्यादा ही असहजता देखी जा रही है। भाजपा के एक नेता ने तो नीतीश की कुमार के खिलाफ पगड़ी ही बांध ली है।
यही कारण है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश इकाई जदयू के साथ चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं दिख रही थी। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के दबाव में सत्ता परिवर्तन हुआ और जनता दल यूनाइटेड के साथ चुनाव लड़ने का फैसला भी लिया गया। यही नहीं बिहार में प्रधानमंत्री 2024 के लोकसभा चुनाव में 400 पार के नारे के बाद जो परिणाम आया। इसका परिणाम यह था कि विपक्ष एक से 10 पर पहुंच गई।भाजपा को 5 सीटों पर पराजय मिली और सहयोगी जनता दल यूनाइटेड 4 सीटों पर हारी। एक सीट पर एनडीए में शामिल उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा की हार हुई। राजनीतिक विश्लेषण को का मानना है कि एनडीए जनता दल यूनाइटेड के कारण बिहार में उत्तर प्रदेश से भी बुरी करारी हार से बच गई। अन्यथा भारतीय जनता पार्टी के लिए बिहार में दो सीट भी जितना कठिन होता।
यही कारण है कि चुनाव परिणाम से लगे झटके के बाद एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगियों ने नीतीश कुमार को कमजोर करने की साजिश शुरू कर दी है। की स्थिति 2019 में भी लोकसभा चुनाव के बाद बिहार में पैदा हुई थी और 2020 के विधानसभा चुनाव में जो हुआ। उसकी खटास अब तक बनी हुई है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार की गद्दी से हटाने की कोशिश मैं जुट गया है। मीडिया के एक बड़े हिस्से में हवा हवाई चर्चा का दौड़ चल रहा है। इस अभियान में संघ, भाजपा, बीजेपी की सेकंड लाइन पार्टी और उनकी सहयोगी मीडिया रात- दिन में लगी जुटी है।
अचानक सीएम नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी की खोज में जुट गई है। मीडिया के कुछ साथी कई दिनों से सीएम नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के रूप में उनके पुत्र निशांत कुमार की चर्चा कर रहे हैं। बिहार के सीनियर पत्रकार ने तो एक नया नाम उछाल दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जीवन पर पुस्तक लिखने वाले भागलपुर के उदय कांत मिश्रा की चर्चा कर रहे हैं। वह उनके खास मित्र बताए जा रहे हैं। वैसे, मैंने कभी भी इस नाम की चर्चा मित्र के रूप में कभी नहीं सुनी। जो इतने इंपोर्टेंट है कि सीएम नीतीश कुमार अपना उत्तराधिकारी बना सकते हैं? इतना जरूर है कि पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उनकी पुस्तक का विमोचन पटना में किया था और उस विमोचन समारोह में सीएम यह नवरत्न मंडली के कई सदस्य मौजूद थे। जो हमेशा नक्षत्र की तरह उनको घेर रहते हैं। वैसे बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर बहुत सारे लोग दावेदार हैं। जिन्हें इसके लिए लार टपक रहा है। इसमें तो कई मंत्री और नेता भी हैं। किस आकाशवाणी के आधार पर अचानक यह भविष्यवाणी शुरू हो गई है।
2014 से ही यह कोशिश जारी हैऔर आज भी कई इस जुगाड़ में जुटे हैं। इसमें कई जनता दल यूनाइटेड के मंत्री और नेता भी मुंह में लार दबाए हैं। किसी को यह कुर्सी सेवा के मेवा के रूप में चाहिए,तो किसी को जातीय उत्तराधिकारी के तौर पर चाहिए। पहले भी कुछ नेताओं को इसी चक्कर में अच्छी खासी प्रतिष्ठा और रुतबा खोनी पड़ी। वैसे, उन्हें भी आज अपनी भूल का एहसास हो रहा होगा।इ स चक्कर में वह साजिश का शिकार होकर आज न घर के रहे, न घाट के।अपने चाटुकार मंडली के कारण अपना तो नुकसान कर लिया। फिर एक सांसद महोदय वही गलती कर रहे हैं। अपनी जीत का श्रेय तो मुख्यमंत्री जी को दे रहे हैं लेकिन अपनी बातों से उनके लिए संकट पैदा कर रहे हैं। पत्रकारों का तो यहां तक करना है कि वह ऐसा भाजपा के इशारे पर कर रहे हैं। इसमें कितनी सच्चाई है वह जानें लेकिन मामला तो जरूर गर्म हो गया है। पूर्व राज्यसभा सदस्य लगातार इसमें कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। जदयू के भीतर भी मुख्यमंत्री के लिए गड्ढे खोदने वालों की संख्या बढ़ गई है। केंद्र में मंत्री पद का लालसा जदयू की राजनीति को झकझोर रही है। यही कारण है कि अचानक इन दिनों सीएम नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी की खोज शुरू हो जा रही। विभिन्न जातियों को लेकर ऐसी टिप्पणी आ रही। भविष्य की राजनीति में बड़े कांटे पैदा कर सकती है। राष्ट्रीय जनता दल भी वही चाहती है, जो भाजपा चाहता है। दोनों की नजर कुशवाहा समाज पर खासतौर पर बनी हुई है। इरादा सिर्फ भी इतना ही है कि गले से हड्डी निकले और दोनों तरफ से कोशिश यही है कि बिहार की राजसत्ता पर विराजमान होने का अवसर मिले। बिहार में अब भाजपा और राष्ट्रीय जनता दल आमने- सामने हो।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के लिए गले की हड्डी बने हैं। यह हालत आज से नहीं है। जब से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नरेंद्र मोदी विराजमान हुए हैं। यह संकट बना हुआ है। हाल के कुछ दिनों में सीएम नीतीश कुमार को लेकर बिहार भाजपा में कुछ ज्यादा ही असहजता देखी जा रही है। भाजपा के एक नेता ने तो नीतीश की कुमार के खिलाफ पगड़ी ही बांध ली है।
यही कारण है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश इकाई जदयू के साथ चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं दिख रही थी। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के दबाव में सत्ता परिवर्तन हुआ और जनता दल यूनाइटेड के साथ चुनाव लड़ने का फैसला भी लिया गया। यही नहीं बिहार में प्रधानमंत्री 2024 के लोकसभा चुनाव में 400 पार के नारे के बाद जो परिणाम आया। इसका परिणाम यह था कि विपक्ष एक से 10 पर पहुंच गई।भाजपा को 5 सीटों पर पराजय मिली और सहयोगी जनता दल यूनाइटेड 4 सीटों पर हारी। एक सीट पर एनडीए में शामिल उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा की हार हुई। राजनीतिक विश्लेषण को का मानना है कि एनडीए जनता दल यूनाइटेड के कारण बिहार में उत्तर प्रदेश से भी बुरी करारी हार से बच गई। अन्यथा भारतीय जनता पार्टी के लिए बिहार में दो सीट भी जितना कठिन होता।
यही कारण है कि चुनाव परिणाम से लगे झटके के बाद एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगियों ने नीतीश कुमार को कमजोर करने की साजिश शुरू कर दी है। की स्थिति 2019 में भी लोकसभा चुनाव के बाद बिहार में पैदा हुई थी और 2020 के विधानसभा चुनाव में जो हुआ। उसकी खटास अब तक बनी हुई है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार की गद्दी से हटाने की कोशिश मैं जुट गया है। मीडिया के एक बड़े हिस्से में हवा हवाई चर्चा का दौड़ चल रहा है। इस अभियान में संघ, भाजपा, बीजेपी की सेकंड लाइन पार्टी और उनकी सहयोगी मीडिया रात- दिन में लगी जुटी है। अचानक सीएम नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी की खोज में जुट गई है। मीडिया के कुछ साथी कई दिनों से सीएम नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के रूप में उनके पुत्र निशांत कुमार की चर्चा कर रहे हैं। बिहार के सीनियर पत्रकार ने तो एक नया नाम उछाल दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जीवन पर पुस्तक लिखने वाले भागलपुर के उदय कांत मिश्रा की चर्चा कर रहे हैं। वह उनके खास मित्र बताए जा रहे हैं। वैसे, मैंने कभी भी इस नाम की चर्चा मित्र के रूप में कभी नहीं सुनी। जो इतने इंपोर्टेंट है कि सीएम नीतीश कुमार अपना उत्तराधिकारी बना सकते हैं? इतना जरूर है कि पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उनकी पुस्तक का विमोचन पटना में किया था और उस विमोचन समारोह में सीएम यह नवरत्न मंडली के कई सदस्य मौजूद थे। जो हमेशा नक्षत्र की तरह उनको घेर रहते हैं। वैसे बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर बहुत सारे लोग दावेदार हैं। जिन्हें इसके लिए लार टपक रहा है। इसमें तो कई मंत्री और नेता भी हैं। किस आकाशवाणी के आधार पर अचानक यह भविष्यवाणी शुरू हो गई है।
2014 से ही यह कोशिश जारी हैऔर आज भी कई इस जुगाड़ में जुटे हैं। इसमें कई जनता दल यूनाइटेड के मंत्री और नेता भी मुंह में लार दबाए हैं। किसी को यह कुर्सी सेवा के मेवा के रूप में चाहिए,तो किसी को जातीय उत्तराधिकारी के तौर पर चाहिए। पहले भी कुछ नेताओं को इसी चक्कर में अच्छी खासी प्रतिष्ठा और रुतबा खोनी पड़ी। वैसे, उन्हें भी आज अपनी भूल का एहसास हो रहा होगा। इस चक्कर में वह साजिश का शिकार होकर आज न घर के रहे, न घाट के।अपने चाटुकार मंडली के कारण अपना तो नुकसान कर लिया।
फिर एक सांसद महोदय वही गलती कर रहे हैं। अपनी जीत का श्रेय तो मुख्यमंत्री जी को दे रहे हैं लेकिन अपनी बातों से उनके लिए संकट पैदा कर रहे हैं। पत्रकारों का तो यहां तक करना है कि वह ऐसा भाजपा के इशारे पर कर रहे हैं। इसमें कितनी सच्चाई है वह जानें लेकिन मामला तो जरूर गर्म हो गया है। पूर्व राज्यसभा सदस्य लगातार इसमें कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। जदयू के भीतर भी मुख्यमंत्री के लिए गड्ढे खोदने वालों की संख्या बढ़ गई है। केंद्र में मंत्री पद का लालसा जदयू की राजनीति को झकझोर रही है। यही कारण है कि अचानक इन दिनों सीएम नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी की खोज शुरू हो जा रही। विभिन्न जातियों को लेकर ऐसी टिप्पणी आ रही। भविष्य की राजनीति में बड़े कांटे पैदा कर सकती है। राष्ट्रीय जनता दल भी वही चाहती है, जो भाजपा चाहता है। दोनों की नजर कुशवाहा समाज पर खासतौर पर बनी हुई है। इरादा सिर्फ भी इतना ही है कि गले से हड्डी निकले और दोनों तरफ से कोशिश यही है कि बिहार की राजसत्ता पर विराजमान होने का अवसर मिले। बिहार में अब भाजपा और राष्ट्रीय जनता दल आमने- सामने हो। फिर भी नीतीश कुमार का दिमाग इनकी मंजिल में बाधा बना है।
(लेखक प्रभात कुमार राजनीतिक विश्लेषक एवं बिहार में हिंदुस्तान हिंदी दैनिक के सीनियर रिपोर्टर रहे हैं)